Friday, July 5, 2013

मध्य प्रदेश यात्रा : मांडू

मध्य प्रदेश के मालवा क्षत्र में आज से कुछ सौ साल पहले बसा था एक खूबसूरत शहर। जिसे अक्सर अलग अलग नामो से पहचाना गया, जिसपर राज भोज से लेकर मुगलों तक अनेक राजाओं ने राज किया, जहाँ  बाज बहादुर और रूपमती के मुहब्बत की और जहां ताज महल बनाने का ख़याल पहली बार पनपा । मुहब्बत का शहर, खुशी का शहर मांडू। 


 


शहरी भीड़ भाड़ से बेहद दूर, ना इमारते, न शोर। न पर्यटक स्थलों सा दिखावा ही।    इतिहास मानो हर और बिखरा पड़ा है। 72 किलोमीटर परिधि का किला और तीन हज़ार से ज्यादा महल और अवशेष। जहां कभी नौ लाख लोग रहा करते थे अब वाहा बस उनकी कहानियां गूंजती है। 

                       

महल, इमारते इतनी अद्भुत, ऐसी कारीगरी, ऐसी तरकीबें दाँतों टेल अंगुली दबा लें।   कोई २ दिन में महल खडा कर दिया, तो किसी ने पंद्रह सौ रानियों के लिए सात मंजिला हरम बना दिया । रूपमती और    बाज बहादुर के संगीत महल में आज भी वही स्वर लहरियां सुनाई देती है। हमारे वहाँ पहुँचने पर नंगे पाँव और बेहद लम्बी बांसुरी लिए एक ग्रामीण न जाने कहा से आ गया। तारीखें उलटी चलने लगी

                         

बारिश के मौसम में नज़ारा में अलग ही रूमानियत घुल जाती  है। हवा पर सवार ठंडी बुँदे, बादलों के बीच लुक्का छुपी और हरे मैदानों, झीलों का नज़ारा। खामोशीयाँ भी मानो गीत सुनाते है यहाँ। मन करता है यहीं बस जाने का ... पर क्या करें सफ़र चलता रहा, ज़िन्दगी रुकी नहीं ।



                                                          

Thursday, December 15, 2011

कोटा ... हमेशा युवा !!

कोटा, एक ऐसा शहर जिसे रास्ते से गुज़रते देखा जाए तो वो हमेशा जवाँ लगता है, नए चेहरे लेकिन वही उम्र | जब गौर किया तब पाया ये सच भी है | कोटा आज देश का सबसे बड़ा कोचिंग-हब है | हज़ारों-लाखों विद्यार्थी इंजीनियरिंग-चिकित्सा के क्षेत्रों में प्रवेश पूर्व यहाँ के महाकुम्भ में डुबकी ज़रूर लगाते है|हर दिन वही नज़ारा, सुबह पोहे की दुकानों पर अलसाते बच्चों का जमघट, दोपहर में बैग लटकाए साइकिल - रिक्शा में जाते विद्यार्थी और शाम ढले अपने अपने घरौंदों में बतियाते लौटते वही थके हुए चेहरे | 

वैसे तो कोटा एक संस्कृति समृद्ध शहर है, साथ ही साथ राजस्थान क़ी औद्योगिक राजधानी भी | | यहाँ की चित्रकला, शिल्पकला, मसुरिया मलमल, कोटा डोरिया इत्यादि विश्व प्रसिद्ध है और देश की 8% बिजली का उत्पादन भी करता है| (मज़े क़ी बाते यह है कि फिर भी यहाँ बिजली कटौती होती है |) लेकिन जो बात मुझे आकर्षित करती हे वो यहाँ का शिक्षण उद्योग | उद्योग शब्द के प्रयोग के लिए शिक्षाविद मुझे माफ़ करे, परन्तु यह सर्व-मान्य है कि कोई भी यहाँ गुरुकुल नहीं चला रहा | निःस्वार्थ ज्ञान बांटना अब मात्र दंतकथा है |

यहाँ चारों ओर बच्चो कि रेलमपेल है | नन्हे कंधो पर सपनों का बोझ | यदा-कदा खुद की ललक और अधिकांशतया के अभिभावकों का दबाव बच्चों को यहाँ आने को मजबूर कर देता है | कुछ यहाँ के कठिन वातावरण में तपकर कुंदन बन जाते है, बाकी उसी तपिश में राख हो जाते है | ख़्वाबों के मज़बूत महल यहाँ की प्रतियोगी आंधी में ताश के पत्तों से ढह जाते है और ये आंधी बचपन भी कब उड़ा ले जाती है, एहसास ही नहीं होता | यहाँ एक ओर  हर गली-मोहल्ले में खुले शिक्षण संस्थान, स्टेशनरी की दुकाने आपको पढने को आमंत्रित करती है, वही बगल में ही खुले साइबर कैफे, गेमिंग हब 'मेनका' समान आपको फुसलाते भी है| ऐसे में १४-१५ साल के बालक /बालिका से संयम की अपेक्षा रखना तो सरासर बेईमानी होगी |
शिक्षा के सौदागर हर नुक्कड़ पर अपनी दुकान लगाये बैठे है | कुछ बड़े आसामियो के सजे-धजे शो-रूम भी है | व्यापार धड़ल्ले से चलता है | बाहर खड़ी साइकल की मीलों लम्बी कटारे ही मुनाफे का सबूत देने को काफी है | इन्ही की टुकड़ो पर कई और आय के साधन पनपे है |  भोजनालय (मेस ), छात्रावास, पेइंग गेस्ट, परिवहन, स्कूल, साइकल , सिगरेट, शराब | पूरा तंत्र अभिभावकों की गाढ़ी कमाई को उनसे जुदा करने में लगा है |विद्यार्थियों का बचपन बेच कर ये शहर अपनी उम्र बढ़ा रहा है| जबकि परिणाम की कोई गारंटी नहीं | भारत में शिक्षा के व्यापार का इससे बेहतर उदाहरण शायद ही देखने को मिले | फिर भी प्रवाह जारी है | कुछ को यहाँ डूबने से मुक्ति मिल जाती है, अधिकांश असफल होकर आगे भी दुनिया के व्युह्चक्र में छटपटाते रहते है |
अगर कोचिंग से आगे बढ़कर देखे तो कोटा के भी अपने अलग रंग हे और निराले अंदाज़ | यहाँ के निवासियों में एक अल्हड़पन है, छुपी हुई उद्दंडता है, कोई लाग-लगाव नहीं, स्पष्ट वचन, दिल की बात जुबां पर | लोगों क़ी सुबह यहाँ देरी से होती है, और दोपहर में सभी दुकाने बंद कर सुस्ताते रहते है | लेकिन शाम ढले रौनक देखने लायक होती है |
कोटा की एक और ख़ास बात है| यहाँ नए बसे हिस्सों में जितने नाले है (जो कि बहुत अधिक है), उतने ही  मैदान, उद्यान, बगीचे भी | क्रिकेट, फुटबाल खेलते बच्चों का शोर शाम ढले चरम पर | सांध्य काल में  चम्बल तट पर बने कई उद्यानों में हर उम्र  के हँसते - खिलखिलाते लोग दिखने लगते है | प्रदूषित चम्बल नदी तट से ऊँची-ऊँची चिमनियों का नज़ारा, पर्यावण प्रेमियों को छोड़ कर एकबारगी सब को लुभा लेता है | मंदिरों की घंटिया वातावरण में रूहानियत सी घोल देती है | रात को यदि चाय - फास्ट फ़ूड जोइंट्स पर बच्चों क़ी सामन्य से अधिक भीड़ दिखे तो समझ लीजियेगा, ज़रूर अंदर दूरदर्शन  पर क्रिकेट मैच चल रहा है |

किले के परकोटे से सटकर बने रंगे - बेरंग मकान , भीतर शहर में कपड़ों की दुकानों की कतारें, नए बनते माल्स की चकाचौंध, प्याज- धनिये से सजे स्वादिष्ट इन्दौरी पोहे, 'अमर पंजाबी ढाबे' का जायका, ईटोस क़ी पेस्ट्री, चम्बल किनारे शाम ... कोटा के अपने रंग, ढंग और स्वाद है | पर अगर आप विद्यार्थी है तो ज़रा संभलकर इसमें खोइयेगा |       
अंत में सलाम करता हूँ उन सभी को जिन्होंने यहाँ सीलन भरे छोटे छोटे कमरों में २-३ साल गुज़ारे, उम्मीद करता हूँ आज आप सभी ए.सी कमरों में आराम फरमा रहे हो  |


Sunday, May 22, 2011

चंडीगढ़ .......जहा छायाएं साथ चलती है !


भारत का एक अत्याधुनिक शहर, सारी सुख सुविधा संपन्न एवं वृहत जनसंख्या वाला | लेकिन फिर भी शांत , प्रदूषण एवं ट्रेफिक से दूर , साफ़ सुथरी सडको एवं हरे पेड़ों से घिरी फुटपाथों वाला शहर | एक बारगी पढ़ने में शायर कि कल्पना सा प्रतीत होता है | लेकिन जब पहली बार यहाँ कदम रखा तो आश्चर्य हुआ कि सच में भारत में कोई शहर ऐसा भी है | प्रतीत हुआ मानो मन में बसी एक आदर्श शहर कि छवि को किसी अद्भुत शिल्पकार ने ज़मी पर साकार कर दिया हो |

जब स्टेशन से बाहर निकलने पर यहाँ कि हवा का पहला झोंका चेहरे को छूता है तो प्रतीत होता हैमानो एक विशाल सुरम्य उद्यान में आ गए हो | वह से शहर तक के सफर में आप हरे रंगों में डूबते चले जाते है | हरे भरे घास के मैदान हर ओर अटखेलियाँ मारते है| आम, अमरुद, शेह्तूत के पेड़ सड़कों को अपने आगोश में छुपाए रखते है| उनपर लटक रहे रसीले फल आपको आस पास पत्थर ढूंढने को मजबूर कर देते है | फूलों कि भीनी सुगंध से स्वतः ही आपका मनो-खग मधुर उड़ाने भरने लगता है और अनजाने ही आप शहर के प्राकृतिक सौन्दार्य में डूब जाते है | छायाएं आपके साथ दौड़ने लगती है |

चंडीगढ़ कि सड़के देश के राष्ट्रीय राजमार्गों को भी ठेंगा दिखाती है | ये सड़के पूरे चंडीगढ़ शहर को आयताकार भागों में विभाजित करती है| सीढ़ी , सपाट , साफ़ सुथरी हरियाली को चीरती हुई | यहाँ आपको पार्किंग में मीलों लंबी कतारे मिल जाएगी लेकिन सड़कों पर ट्रेफिक नहीं | हर चौराहा अपने में एक अलग अंदाज़ लिए है , विविध फूलों और रंगों से सुशोभित |


शहर कि लगभग सभी इमारते चटक लाल रंगों से बनी है, सभी दो मंजिला | मानो हरियाली को निमंत्रण दे रही हो के उन्हें आगोश में ले लें| भवन निर्माण में अनुशाशन का चंडीगढ़ अद्भुत उदाहरण है |

मैं पिछले ७ वर्षों से लगभग हर साल एक बार इस खूबसूरत शहर हो आता हूँ | जहाँ दुसरे शहरों के रंग , मिजाज पल पल बदलते रहते है , वही चंडीगढ़ शाश्वत है , जैसा छोड कर जाओ बिलकुल वैसा , वही अपनापन , वही महक ! मानो अपने सौंदर्य के चरम पर उसकी उम्र रोक दी गयी हो | ना इमारतों में आधुनिकता कि अंधी दौड है ना लोगो में मुंबई दिल्ली सी भागम भाग !

वैसे तो चंडीगढ़ में सैर सपाटे कि ढेरों जगह है सुखना लेक के किनारे खूबसूरत शाम , रोज़ गार्डन में टहलना, रोचक गार्डन का शिल्प | लेकिन जो बात दिल में बस जाती है वो हे यहाँ का माहौल, महंगे शो- रूम के बाहर घूमती आधुनिक वस्त्रों सुसज्जित बालाए , कोट – टाई पहन कर भी आराम से बेंच पर अलसाते नवयुवक , पेड़ों पर चहकते परिंदे ,चेहरे को छूता फव्वारों का ठंडा पानी , सेक्टर १७ में शौपिंग का आनंद और आराम से घुमते लोगो के बीच चिंतामुक्त हो सोफ्टी कि चुस्की |

यही है चंडीगढ़ .... उन चुनिन्दा शहरों में से जो आपको सुकून देते है |
प्यार से तराशा हुआ, जहा सपने ना सिर्फ जन्म लेते हे बल्कि पूरे होते है ... चंडीगढ़ !!